कामदेव की प्रकृति पर असर
(चौपाई)
सब के हृदयँ मदन अभिलाषा । लता निहारि नवहिं तरु साखा ॥
नदीं उमगि अंबुधि कहुँ धाई । संगम करहिं तलाव तलाई ॥१॥
जहँ असि दसा जड़न्ह कै बरनी । को कहि सकइ सचेतन करनी ॥
पसु पच्छी नभ जल थलचारी । भए कामबस समय बिसारी ॥२॥
मदन अंध ब्याकुल सब लोका । निसि दिनु नहिं अवलोकहिं कोका ॥
देव दनुज नर किंनर ब्याला । प्रेत पिसाच भूत बेताला ॥३॥
इन्ह कै दसा न कहेउँ बखानी । सदा काम के चेरे जानी ॥
सिद्ध बिरक्त महामुनि जोगी । तेपि कामबस भए बियोगी ॥४॥
(छंद)
भए कामबस जोगीस तापस पावँरन्हि की को कहै ।
देखहिं चराचर नारिमय जे ब्रह्ममय देखत रहे ॥
अबला बिलोकहिं पुरुषमय जगु पुरुष सब अबलामयं ।
दुइ दंड भरि ब्रह्मांड भीतर कामकृत कौतुक अयं ॥
(सोरठा)
धरी न काहूँ धिर सबके मन मनसिज हरे ।
जे राखे रघुबीर ते उबरे तेहि काल महुँ ॥ ८५ ॥