गरुडजी ने श्रीराम को नागपाश से मुक्त किया
चरित राम के सगुन भवानी । तर्कि न जाहिं बुद्धि बल बानी ॥
अस बिचारि जे तग्य बिरागी । रामहि भजहिं तर्क सब त्यागी ॥१॥
ब्याकुल कटकु कीन्ह घननादा । पुनि भा प्रगट कहइ दुर्बादा ॥
जामवंत कह खल रहु ठाढ़ा । सुनि करि ताहि क्रोध अति बाढ़ा ॥२॥
बूढ़ जानि सठ छाँड़ेउँ तोही । लागेसि अधम पचारै मोही ॥
अस कहि तरल त्रिसूल चलायो । जामवंत कर गहि सोइ धायो ॥३॥
मारिसि मेघनाद कै छाती । परा भूमि घुर्मित सुरघाती ॥
पुनि रिसान गहि चरन फिरायौ । महि पछारि निज बल देखरायो ॥४॥
बर प्रसाद सो मरइ न मारा । तब गहि पद लंका पर डारा ॥
इहाँ देवरिषि गरुड़ पठायो । राम समीप सपदि सो आयो ॥५॥
(दोहा)
खगपति सब धरि खाए माया नाग बरूथ ।
माया बिगत भए सब हरषे बानर जूथ ॥ ७४(क) ॥
गहि गिरि पादप उपल नख धाए कीस रिसाइ ।
चले तमीचर बिकलतर गढ़ पर चढ़े पराइ ॥ ७४(ख) ॥