ईन्द्र ने नारद के तपभंग के लिए कामदेव को भेजा
(चौपाई)
तेहि आश्रमहिं मदन जब गयऊ । निज मायाँ बसंत निरमयऊ ॥
कुसुमित बिबिध बिटप बहुरंगा । कूजहिं कोकिल गुंजहि भृंगा ॥१॥
चली सुहावनि त्रिबिध बयारी । काम कृसानु बढ़ावनिहारी ॥
रंभादिक सुरनारि नबीना । सकल असमसर कला प्रबीना ॥२॥
करहिं गान बहु तान तरंगा । बहुबिधि क्रीड़हि पानि पतंगा ॥
देखि सहाय मदन हरषाना । कीन्हेसि पुनि प्रपंच बिधि नाना ॥३॥
काम कला कछु मुनिहि न ब्यापी । निज भयँ डरेउ मनोभव पापी ॥
सीम कि चाँपि सकइ कोउ तासु । बड़ रखवार रमापति जासू ॥४॥
(दोहा)
सहित सहाय सभीत अति मानि हारि मन मैन ।
गहेसि जाइ मुनि चरन तब कहि सुठि आरत बैन ॥ १२६ ॥