शिवजी की समाधि भंग करने के लिए कामदेव तैयार
(चौपाई)
तदपि करब मैं काजु तुम्हारा । श्रुति कह परम धरम उपकारा ॥
पर हित लागि तजइ जो देही । संतत संत प्रसंसहिं तेही ॥१॥
अस कहि चलेउ सबहि सिरु नाई । सुमन धनुष कर सहित सहाई ॥
चलत मार अस हृदयँ बिचारा । सिव बिरोध ध्रुव मरनु हमारा ॥२॥
तब आपन प्रभाउ बिस्तारा । निज बस कीन्ह सकल संसारा ॥
कोपेउ जबहि बारिचरकेतू । छन महुँ मिटे सकल श्रुति सेतू ॥३॥
ब्रह्मचर्ज ब्रत संजम नाना । धीरज धरम ग्यान बिग्याना ॥
सदाचार जप जोग बिरागा । सभय बिबेक कटकु सब भागा ॥४॥
(छंद)
भागेउ बिबेक सहाय सहित सो सुभट संजुग महि मुरे ।
सदग्रंथ पर्बत कंदरन्हि महुँ जाइ तेहि अवसर दुरे ॥
होनिहार का करतार को रखवार जग खरभरु परा ।
दुइ माथ केहि रतिनाथ जेहि कहुँ कोपि कर धनु सरु धरा ॥
(दोहा)
जे सजीव जग अचर चर नारि पुरुष अस नाम ।
ते निज निज मरजाद तजि भए सकल बस काम ॥ ८४ ॥