Thursday, 14 November, 2024

Kamdev unsuccessful on Shiva

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शिवजी की समाधि भंग करने में कामदेव नाकामियाब
 
(चौपाई)
उभय घरी अस कौतुक भयऊ । जौ लगि कामु संभु पहिं गयऊ ॥
सिवहि बिलोकि ससंकेउ मारू । भयउ जथाथिति सबु संसारू ॥१॥
 
भए तुरत सब जीव सुखारे । जिमि मद उतरि गएँ मतवारे ॥
रुद्रहि देखि मदन भय माना । दुराधरष दुर्गम भगवाना ॥२॥
 
फिरत लाज कछु करि नहिं जाई । मरनु ठानि मन रचेसि उपाई ॥
प्रगटेसि तुरत रुचिर रितुराजा । कुसुमित नव तरु राजि बिराजा ॥३॥
 
बन उपबन बापिका तड़ागा । परम सुभग सब दिसा बिभागा ॥
जहँ तहँ जनु उमगत अनुरागा । देखि मुएहुँ मन मनसिज जागा ॥४॥
 
(छंद)
जागइ मनोभव मुएहुँ मन बन सुभगता न परै कही ।
सीतल सुगंध सुमंद मारुत मदन अनल सखा सही ॥
बिकसे सरन्हि बहु कंज गुंजत पुंज मंजुल मधुकरा ।
कलहंस पिक सुक सरस रव करि गान नाचहिं अपछरा ॥
 
(दोहा)
सकल कला करि कोटि बिधि हारेउ सेन समेत ।
चली न अचल समाधि सिव कोपेउ हृदयनिकेत ॥ ८६ ॥

 

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