मेघनाद ने श्रीराम को नागपाश से बाँधा
सक्ति सूल तरवारि कृपाना । अस्त्र सस्त्र कुलिसायुध नाना ॥
डारह परसु परिघ पाषाना । लागेउ बृष्टि करै बहु बाना ॥१॥
दस दिसि रहे बान नभ छाई । मानहुँ मघा मेघ झरि लाई ॥
धरु धरु मारु सुनिअ धुनि काना । जो मारइ तेहि कोउ न जाना ॥२॥
गहि गिरि तरु अकास कपि धावहिं । देखहि तेहि न दुखित फिरि आवहिं ॥
अवघट घाट बाट गिरि कंदर । माया बल कीन्हेसि सर पंजर ॥३॥
जाहिं कहाँ ब्याकुल भए बंदर । सुरपति बंदि परे जनु मंदर ॥
मारुतसुत अंगद नल नीला । कीन्हेसि बिकल सकल बलसीला ॥४॥
पुनि लछिमन सुग्रीव बिभीषन । सरन्हि मारि कीन्हेसि जर्जर तन ॥
पुनि रघुपति सैं जूझे लागा । सर छाँड़इ होइ लागहिं नागा ॥५॥
ब्याल पास बस भए खरारी । स्वबस अनंत एक अबिकारी ॥
नट इव कपट चरित कर नाना । सदा स्वतंत्र एक भगवाना ॥६॥
रन सोभा लगि प्रभुहिं बँधायो । नागपास देवन्ह भय पायो ॥७॥
(दोहा)
गिरिजा जासु नाम जपि मुनि काटहिं भव पास ।
सो कि बंध तर आवइ ब्यापक बिस्व निवास ॥ ७३ ॥