Ram kill Maricha, the golden deer
By-Gujju27-04-2023
Ram kill Maricha, the golden deer
By Gujju27-04-2023
राम ने सुवर्णमृग वेशधारी मारीच का नाश किया
तेहि बन निकट दसानन गयऊ । तब मारीच कपटमृग भयऊ ॥
अति बिचित्र कछु बरनि न जाई । कनक देह मनि रचित बनाई ॥१॥
सीता परम रुचिर मृग देखा । अंग अंग सुमनोहर बेषा ॥
सुनहु देव रघुबीर कृपाला । एहि मृग कर अति सुंदर छाला ॥२॥
सत्यसंध प्रभु बधि करि एही । आनहु चर्म कहति बैदेही ॥
तब रघुपति जानत सब कारन । उठे हरषि सुर काजु सँवारन ॥३॥
मृग बिलोकि कटि परिकर बाँधा । करतल चाप रुचिर सर साँधा ॥
प्रभु लछिमनिहि कहा समुझाई । फिरत बिपिन निसिचर बहु भाई ॥४॥
सीता केरि करेहु रखवारी । बुधि बिबेक बल समय बिचारी ॥
प्रभुहि बिलोकि चला मृग भाजी । धाए रामु सरासन साजी ॥५॥
निगम नेति सिव ध्यान न पावा । मायामृग पाछें सो धावा ॥
कबहुँ निकट पुनि दूरि पराई । कबहुँक प्रगटइ कबहुँ छपाई ॥६॥
प्रगटत दुरत करत छल भूरी । एहि बिधि प्रभुहि गयउ लै दूरी ॥
तब तकि राम कठिन सर मारा । धरनि परेउ करि घोर पुकारा ॥७॥
लछिमन कर प्रथमहिं लै नामा । पाछें सुमिरेसि मन महुँ रामा ॥
प्रान तजत प्रगटेसि निज देहा । सुमिरेसि रामु समेत सनेहा ॥८॥
अंतर प्रेम तासु पहिचाना । मुनि दुर्लभ गति दीन्हि सुजाना ॥९॥
(दोहा)
बिपुल सुमन सुर बरषहिं गावहिं प्रभु गुन गाथ ।
निज पद दीन्ह असुर कहुँ दीनबंधु रघुनाथ ॥ २७ ॥