सप्तर्षि द्नारा उमा को नारद के वचन में विश्वास न करने की सलाह
(चौपाई)
दच्छसुतन्ह उपदेसेन्हि जाई । तिन्ह फिरि भवनु न देखा आई ॥
चित्रकेतु कर घरु उन घाला । कनककसिपु कर पुनि अस हाला ॥१॥
नारद सिख जे सुनहिं नर नारी । अवसि होहिं तजि भवनु भिखारी ॥
मन कपटी तन सज्जन चीन्हा । आपु सरिस सबही चह कीन्हा ॥२॥
तेहि कें बचन मानि बिस्वासा । तुम्ह चाहहु पति सहज उदासा ॥
निर्गुन निलज कुबेष कपाली । अकुल अगेह दिगंबर ब्याली ॥३॥
कहहु कवन सुखु अस बरु पाएँ । भल भूलिहु ठग के बौराएँ ॥
पंच कहें सिवँ सती बिबाही । पुनि अवडेरि मराएन्हि ताही ॥४॥
(दोहा)
अब सुख सोवत सोचु नहि भीख मागि भव खाहिं ।
सहज एकाकिन्ह के भवन कबहुँ कि नारि खटाहिं ॥ ७९ ॥