सप्तर्षि द्वारा उमा की प्रशंसा
(चौपाई)
जौं तुम्ह मिलतेहु प्रथम मुनीसा । सुनतिउँ सिख तुम्हारि धरि सीसा ॥
अब मैं जन्मु संभु हित हारा । को गुन दूषन करै बिचारा ॥१॥
जौं तुम्हरे हठ हृदयँ बिसेषी । रहि न जाइ बिनु किएँ बरेषी ॥
तौ कौतुकिअन्ह आलसु नाहीं । बर कन्या अनेक जग माहीं ॥२॥
जन्म कोटि लगि रगर हमारी । बरउँ संभु न त रहउँ कुआरी ॥
तजउँ न नारद कर उपदेसू । आपु कहहि सत बार महेसू ॥३॥
मैं पा परउँ कहइ जगदंबा । तुम्ह गृह गवनहु भयउ बिलंबा ॥
देखि प्रेमु बोले मुनि ग्यानी । जय जय जगदंबिके भवानी ॥४॥
(दोहा)
तुम्ह माया भगवान सिव सकल जगत पितु मातु ।
नाइ चरन सिर मुनि चले पुनि पुनि हरषत गातु ॥ ८१ ॥