शिवजी का रति को आश्वासन
(चौपाई)
जब जदुबंस कृष्न अवतारा । होइहि हरन महा महिभारा ॥
कृष्न तनय होइहि पति तोरा । बचनु अन्यथा होइ न मोरा ॥१॥
रति गवनी सुनि संकर बानी । कथा अपर अब कहउँ बखानी ॥
देवन्ह समाचार सब पाए । ब्रह्मादिक बैकुंठ सिधाए ॥२॥
सब सुर बिष्नु बिरंचि समेता । गए जहाँ सिव कृपानिकेता ॥
पृथक पृथक तिन्ह कीन्हि प्रसंसा । भए प्रसन्न चंद्र अवतंसा ॥३॥
बोले कृपासिंधु बृषकेतू । कहहु अमर आए केहि हेतू ॥
कह बिधि तुम्ह प्रभु अंतरजामी । तदपि भगति बस बिनवउँ स्वामी ॥४॥
(दोहा)
सकल सुरन्ह के हृदयँ अस संकर परम उछाहु ।
निज नयनन्हि देखा चहहिं नाथ तुम्हार बिबाहु ॥ ८८ ॥