उमा-महेश का पुत्र तारकासुर के नाश का कारण
(चौपाई)
मोर कहा सुनि करहु उपाई । होइहि ईस्वर करिहि सहाई ॥
सतीं जो तजी दच्छ मख देहा । जनमी जाइ हिमाचल गेहा ॥१॥
तेहिं तपु कीन्ह संभु पति लागी । सिव समाधि बैठे सबु त्यागी ॥
जदपि अहइ असमंजस भारी । तदपि बात एक सुनहु हमारी ॥२॥
पठवहु कामु जाइ सिव पाहीं । करै छोभु संकर मन माहीं ॥
तब हम जाइ सिवहि सिर नाई । करवाउब बिबाहु बरिआई ॥३॥
एहि बिधि भलेहि देवहित होई । मर अति नीक कहइ सबु कोई ॥
अस्तुति सुरन्ह कीन्हि अति हेतू । प्रगटेउ बिषमबान झषकेतू ॥४॥
(दोहा)
सुरन्ह कहीं निज बिपति सब सुनि मन कीन्ह बिचार ।
संभु बिरोध न कुसल मोहि बिहसि कहेउ अस मार ॥ ८३ ॥