अंगद और रावण का संवाद
रे कपिपोत बोलु संभारी । मूढ़ न जानेहि मोहि सुरारी ॥
कहु निज नाम जनक कर भाई । केहि नातें मानिऐ मिताई ॥१॥
अंगद नाम बालि कर बेटा । तासों कबहुँ भई ही भेटा ॥
अंगद बचन सुनत सकुचाना । रहा बालि बानर मैं जाना ॥२॥
अंगद तहीं बालि कर बालक । उपजेहु बंस अनल कुल घालक ॥
गर्भ न गयहु ब्यर्थ तुम्ह जायहु । निज मुख तापस दूत कहायहु ॥३॥
अब कहु कुसल बालि कहँ अहई । बिहँसि बचन तब अंगद कहई ॥
दिन दस गएँ बालि पहिं जाई । बूझेहु कुसल सखा उर लाई ॥४॥
राम बिरोध कुसल जसि होई । सो सब तोहि सुनाइहि सोई ॥
सुनु सठ भेद होइ मन ताकें । श्रीरघुबीर हृदय नहिं जाकें ॥५॥
(दोहा)
हम कुल घालक सत्य तुम्ह कुल पालक दससीस ।
अंधउ बधिर न अस कहहिं नयन कान तव बीस ॥ २१ ॥