Sunday, 17 November, 2024

Ansuya’s lesson to Sita

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Ansuya’s lesson to Sita

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अनसूया द्वारा सीता को नारीधर्म की शिक्षा 
 
अनुसुइया के पद गहि सीता । मिली बहोरि सुसील बिनीता ॥
रिषिपतिनी मन सुख अधिकाई । आसिष देइ निकट बैठाई ॥१॥
 
दिब्य बसन भूषन पहिराए । जे नित नूतन अमल सुहाए ॥
कह रिषिबधू सरस मृदु बानी । नारिधर्म कछु ब्याज बखानी ॥२॥
 
मातु पिता भ्राता हितकारी । मितप्रद सब सुनु राजकुमारी ॥
अमित दानि भर्ता बयदेही । अधम सो नारि जो सेव न तेही ॥३॥
 
धीरज धर्म मित्र अरु नारी । आपद काल परिखिअहिं चारी ॥
बृद्ध रोगबस जड़ धनहीना । अधं बधिर क्रोधी अति दीना ॥४॥
 
ऐसेहु पति कर किएँ अपमाना । नारि पाव जमपुर दुख नाना ॥
एकइ धर्म एक ब्रत नेमा । कायँ बचन मन पति पद प्रेमा ॥५॥
 
जग पति ब्रता चारि बिधि अहहिं । बेद पुरान संत सब कहहिं ॥
उत्तम के अस बस मन माहीं । सपनेहुँ आन पुरुष जग नाहीं ॥६॥
 
मध्यम परपति देखइ कैसें । भ्राता पिता पुत्र निज जैंसें ॥
धर्म बिचारि समुझि कुल रहई । सो निकिष्ट त्रिय श्रुति अस कहई ॥७॥
 
बिनु अवसर भय तें रह जोई । जानेहु अधम नारि जग सोई ॥
पति बंचक परपति रति करई । रौरव नरक कल्प सत परई ॥८॥
 
छन सुख लागि जनम सत कोटि । दुख न समुझ तेहि सम को खोटी ॥
बिनु श्रम नारि परम गति लहई । पतिब्रत धर्म छाड़ि छल गहई ॥९॥
 
पति प्रतिकुल जनम जहँ जाई । बिधवा होई पाई तरुनाई ॥१०॥
 
(सोरठा)
सहज अपावनि नारि पति सेवत सुभ गति लहइ ।
जसु गावत श्रुति चारि अजहु तुलसिका हरिहि प्रिय ॥ ५(क) ॥
 
सनु सीता तव नाम सुमिर नारि पतिब्रत करहि ।
तोहि प्रानप्रिय राम कहिउँ कथा संसार हित ॥ ५(ख) ॥

 

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