मंथरा ने अपनी कोशिश जारी रखी
सादर पुनि पुनि पूँछति ओही । सबरी गान मृगी जनु मोही ॥
तसि मति फिरी अहइ जसि भाबी । रहसी चेरि घात जनु फाबी ॥१॥
तुम्ह पूँछहु मैं कहत डेराऊँ । धरेउ मोर घरफोरी नाऊँ ॥
सजि प्रतीति बहुबिधि गढ़ि छोली । अवध साढ़साती तब बोली ॥२॥
प्रिय सिय रामु कहा तुम्ह रानी । रामहि तुम्ह प्रिय सो फुरि बानी ॥
रहा प्रथम अब ते दिन बीते । समउ फिरें रिपु होहिं पिंरीते ॥३॥
भानु कमल कुल पोषनिहारा । बिनु जल जारि करइ सोइ छारा ॥
जरि तुम्हारि चह सवति उखारी । रूँधहु करि उपाउ बर बारी ॥४॥
(दोहा)
तुम्हहि न सोचु सोहाग बल निज बस जानहु राउ ।
मन मलीन मुह मीठ नृप राउर सरल सुभाउ ॥ १७ ॥