Sunday, 17 November, 2024

Ayodhya Kand Doha 209

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Ayodhya Kand  							Doha 209

Ayodhya Kand Doha 209

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भरत के रामप्रेम की भारद्वाज मुनि ने प्रसंशा की
 
नव बिधु बिमल तात जसु तोरा । रघुबर किंकर कुमुद चकोरा ॥
उदित सदा अँथइहि कबहूँ ना । घटिहि न जग नभ दिन दिन दूना ॥१॥
 
कोक तिलोक प्रीति अति करिही । प्रभु प्रताप रबि छबिहि न हरिही ॥
निसि दिन सुखद सदा सब काहू । ग्रसिहि न कैकइ करतबु राहू ॥२॥
 
पूरन राम सुपेम पियूषा । गुर अवमान दोष नहिं दूषा ॥
राम भगत अब अमिअँ अघाहूँ । कीन्हेहु सुलभ सुधा बसुधाहूँ ॥३॥
 
भूप भगीरथ सुरसरि आनी । सुमिरत सकल सुंमगल खानी ॥
दसरथ गुन गन बरनि न जाहीं । अधिकु कहा जेहि सम जग नाहीं ॥४॥
 
(दोहा) 
जासु सनेह सकोच बस राम प्रगट भए आइ ।
जे हर हिय नयननि कबहुँ निरखे नहीं अघाइ ॥ २०९ ॥

 

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