Sunday, 17 November, 2024

Ayodhya Kand Doha 262

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Ayodhya Kand  							Doha 262

Ayodhya Kand Doha 262

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मैं ही सर्व अनर्थो का मूल हूँ – भरत
 
भूपति मरन पेम पनु राखी । जननी कुमति जगतु सबु साखी ॥
देखि न जाहि बिकल महतारी । जरहिं दुसह जर पुर नर नारी ॥१॥
 
महीं सकल अनरथ कर मूला । सो सुनि समुझि सहिउँ सब सूला ॥
सुनि बन गवनु कीन्ह रघुनाथा । करि मुनि बेष लखन सिय साथा ॥२॥
 
बिनु पानहिन्ह पयादेहि पाएँ । संकरु साखि रहेउँ एहि घाएँ ॥
बहुरि निहार निषाद सनेहू । कुलिस कठिन उर भयउ न बेहू ॥३॥
 
अब सबु आँखिन्ह देखेउँ आई । जिअत जीव जड़ सबइ सहाई ॥
जिन्हहि निरखि मग साँपिनि बीछी । तजहिं बिषम बिषु तामस तीछी ॥४॥
 
(दोहा)  
तेइ रघुनंदनु लखनु सिय अनहित लागे जाहि ।
तासु तनय तजि दुसह दुख दैउ सहावइ काहि ॥ २६२ ॥

 

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