सहायता के लिए आतंकित देवता प्रभु के पास चले
(चौपाई)
बैठे सुर सब करहिं बिचारा । कहँ पाइअ प्रभु करिअ पुकारा ॥
पुर बैकुंठ जान कह कोई । कोउ कह पयनिधि बस प्रभु सोई ॥१॥
जाके हृदयँ भगति जसि प्रीति । प्रभु तहँ प्रगट सदा तेहिं रीती ॥
तेहि समाज गिरिजा मैं रहेऊँ । अवसर पाइ बचन एक कहेऊँ ॥२॥
हरि ब्यापक सर्बत्र समाना । प्रेम तें प्रगट होहिं मैं जाना ॥
देस काल दिसि बिदिसिहु माहीं । कहहु सो कहाँ जहाँ प्रभु नाहीं ॥३॥
अग जगमय सब रहित बिरागी । प्रेम तें प्रभु प्रगटइ जिमि आगी ॥
मोर बचन सब के मन माना । साधु साधु करि ब्रह्म बखाना ॥४॥
(दोहा)
सुनि बिरंचि मन हरष तन पुलकि नयन बह नीर ।
अस्तुति करत जोरि कर सावधान मतिधीर ॥ १८५ ॥