देवीदेवता अपने स्वस्थान प्रस्थान करते है
(चौपाई)
यह रहस्य काहू नहिं जाना । दिन मनि चले करत गुनगाना ॥
देखि महोत्सव सुर मुनि नागा । चले भवन बरनत निज भागा ॥१॥
औरउ एक कहउँ निज चोरी । सुनु गिरिजा अति दृढ़ मति तोरी ॥
काक भुसुंडि संग हम दोऊ । मनुजरूप जानइ नहिं कोऊ ॥२॥
परमानंद प्रेमसुख फूले । बीथिन्ह फिरहिं मगन मन भूले ॥
यह सुभ चरित जान पै सोई । कृपा राम कै जापर होई ॥३॥
तेहि अवसर जो जेहि बिधि आवा । दीन्ह भूप जो जेहि मन भावा ॥
गज रथ तुरग हेम गो हीरा । दीन्हे नृप नानाबिधि चीरा ॥४॥
(दोहा)
मन संतोषे सबन्हि के जहँ तहँ देहि असीस ।
सकल तनय चिर जीवहुँ तुलसिदास के ईस ॥ १९६ ॥