Thursday, 14 November, 2024

Bal Kand Doha 221

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Bal Kand  							Doha 221

Bal Kand Doha 221

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राम-लक्ष्मण को देखकर मिथिलावासी मुग्ध
 
(चौपाई)
कहहु सखी अस को तनुधारी । जो न मोह यह रूप निहारी ॥
कोउ सप्रेम बोली मृदु बानी । जो मैं सुना सो सुनहु सयानी ॥१॥

ए दोऊ दसरथ के ढोटा । बाल मरालन्हि के कल जोटा ॥
मुनि कौसिक मख के रखवारे । जिन्ह रन अजिर निसाचर मारे ॥२॥

स्याम गात कल कंज बिलोचन । जो मारीच सुभुज मदु मोचन ॥
कौसल्या सुत सो सुख खानी । नामु रामु धनु सायक पानी ॥३॥

गौर किसोर बेषु बर काछें । कर सर चाप राम के पाछें ॥
लछिमनु नामु राम लघु भ्राता । सुनु सखि तासु सुमित्रा माता ॥४॥

(दोहा)
बिप्रकाजु करि बंधु दोउ मग मुनिबधू उधारि ।
आए देखन चापमख सुनि हरषीं सब नारि ॥ २२१ ॥

 

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