श्रीराम का अनुपम सौंदर्य
(चौपाई)
सोभा सीवँ सुभग दोउ बीरा । नील पीत जलजाभ सरीरा ॥
मोरपंख सिर सोहत नीके । गुच्छ बीच बिच कुसुम कली के ॥१॥
भाल तिलक श्रमबिंदु सुहाए । श्रवन सुभग भूषन छबि छाए ॥
बिकट भृकुटि कच घूघरवारे । नव सरोज लोचन रतनारे ॥२॥
चारु चिबुक नासिका कपोला । हास बिलास लेत मनु मोला ॥
मुखछबि कहि न जाइ मोहि पाहीं । जो बिलोकि बहु काम लजाहीं ॥३॥
उर मनि माल कंबु कल गीवा । काम कलभ कर भुज बलसींवा ॥
सुमन समेत बाम कर दोना । सावँर कुअँर सखी सुठि लोना ॥४॥
(दोहा)
केहरि कटि पट पीत धर सुषमा सील निधान ।
देखि भानुकुलभूषनहि बिसरा सखिन्ह अपान ॥ २३३ ॥