राम की मनोहरता का वर्णन
(चौपाई)
कटि तूनीर पीत पट बाँधे । कर सर धनुष बाम बर काँधे ॥
पीत जग्य उपबीत सुहाए । नख सिख मंजु महाछबि छाए ॥१॥
देखि लोग सब भए सुखारे । एकटक लोचन चलत न तारे ॥
हरषे जनकु देखि दोउ भाई । मुनि पद कमल गहे तब जाई ॥२॥
करि बिनती निज कथा सुनाई । रंग अवनि सब मुनिहि देखाई ॥
जहँ जहँ जाहि कुअँर बर दोऊ । तहँ तहँ चकित चितव सबु कोऊ ॥३॥
निज निज रुख रामहि सबु देखा । कोउ न जान कछु मरमु बिसेषा ॥
भलि रचना मुनि नृप सन कहेऊ । राजाँ मुदित महासुख लहेऊ ॥४॥
(दोहा)
सब मंचन्ह ते मंचु एक सुंदर बिसद बिसाल ।
मुनि समेत दोउ बंधु तहँ बैठारे महिपाल ॥ २४४ ॥