Friday, 15 November, 2024

Bal Kand Doha 259

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सीता की मनोस्थिति
 
(चौपाई)
गिरा अलिनि मुख पंकज रोकी । प्रगट न लाज निसा अवलोकी ॥
लोचन जलु रह लोचन कोना । जैसे परम कृपन कर सोना ॥१॥

सकुची ब्याकुलता बड़ि जानी । धरि धीरजु प्रतीति उर आनी ॥
तन मन बचन मोर पनु साचा । रघुपति पद सरोज चितु राचा ॥२॥

तौ भगवानु सकल उर बासी । करिहिं मोहि रघुबर कै दासी ॥
जेहि कें जेहि पर सत्य सनेहू । सो तेहि मिलइ न कछु संहेहू ॥३॥

प्रभु तन चितइ प्रेम तन ठाना । कृपानिधान राम सबु जाना ॥
सियहि बिलोकि तकेउ धनु कैसे । चितव गरुरु लघु ब्यालहि जैसे ॥४॥

(दोहा)
लखन लखेउ रघुबंसमनि ताकेउ हर कोदंडु ।
पुलकि गात बोले बचन चरन चापि ब्रह्मांडु ॥ २५९ ॥

 

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