दूत महाराजा दशरथ को राम की पराक्रमगाथा सुनाता है
(चौपाई)
सुनि सरोष भृगुनायकु आए । बहुत भाँति तिन्ह आँखि देखाए ॥
देखि राम बलु निज धनु दीन्हा । करि बहु बिनय गवनु बन कीन्हा ॥१॥
राजन रामु अतुलबल जैसें । तेज निधान लखनु पुनि तैसें ॥
कंपहि भूप बिलोकत जाकें । जिमि गज हरि किसोर के ताकें ॥२॥
देव देखि तव बालक दोऊ । अब न आँखि तर आवत कोऊ ॥
दूत बचन रचना प्रिय लागी । प्रेम प्रताप बीर रस पागी ॥३॥
सभा समेत राउ अनुरागे । दूतन्ह देन निछावरि लागे ॥
कहि अनीति ते मूदहिं काना । धरमु बिचारि सबहिं सुख माना ॥४॥
(दोहा)
तब उठि भूप बसिष्ठ कहुँ दीन्हि पत्रिका जाइ ।
कथा सुनाई गुरहि सब सादर दूत बोलाइ ॥ २९३ ॥