सुनयना पुत्री सीता को बिदा करती है
(चौपाई)
अस कहि रही चरन गहि रानी। प्रेम पंक जनु गिरा समानी ॥
सुनि सनेहसानी बर बानी। बहुबिधि राम सासु सनमानी ॥१॥
राम बिदा मागत कर जोरी। कीन्ह प्रनामु बहोरि बहोरी ॥
पाइ असीस बहुरि सिरु नाई। भाइन्ह सहित चले रघुराई ॥२॥
मंजु मधुर मूरति उर आनी। भई सनेह सिथिल सब रानी ॥
पुनि धीरजु धरि कुअँरि हँकारी। बार बार भेटहिं महतारीं ॥३॥
पहुँचावहिं फिरि मिलहिं बहोरी। बढ़ी परस्पर प्रीति न थोरी ॥
पुनि पुनि मिलत सखिन्ह बिलगाई। बाल बच्छ जिमि धेनु लवाई ॥४॥
(दोहा)
प्रेमबिबस नर नारि सब सखिन्ह सहित रनिवासु।
मानहुँ कीन्ह बिदेहपुर करुनाँ बिरहँ निवासु ॥ ३३७ ॥