Sunday, 22 December, 2024

Bal Kand Doha 347

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Bal Kand  							Doha 347

Bal Kand Doha 347

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नवदंपतिओं का स्वागत
 
(चौपाई)
धूप धूम नभु मेचक भयऊ । सावन घन घमंडु जनु ठयऊ ॥
सुरतरु सुमन माल सुर बरषहिं । मनहुँ बलाक अवलि मनु करषहिं ॥१॥
 
मंजुल मनिमय बंदनिवारे । मनहुँ पाकरिपु चाप सँवारे ॥
प्रगटहिं दुरहिं अटन्ह पर भामिनि । चारु चपल जनु दमकहिं दामिनि ॥२॥
 
दुंदुभि धुनि घन गरजनि घोरा । जाचक चातक दादुर मोरा ॥
सुर सुगन्ध सुचि बरषहिं बारी । सुखी सकल ससि पुर नर नारी ॥३॥
 
समउ जानी गुर आयसु दीन्हा । पुर प्रबेसु रघुकुलमनि कीन्हा ॥
सुमिरि संभु गिरजा गनराजा । मुदित महीपति सहित समाजा ॥४॥
 
(दोहा)
होहिं सगुन बरषहिं सुमन सुर दुंदुभीं बजाइ।
बिबुध बधू नाचहिं मुदित मंजुल मंगल गाइ ॥ ३४७ ॥

 

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