नवदंपतिओं का स्वागत
(चौपाई)
मागध सूत बंदि नट नागर । गावहिं जसु तिहु लोक उजागर ॥
जय धुनि बिमल बेद बर बानी । दस दिसि सुनिअ सुमंगल सानी ॥१॥
बिपुल बाजने बाजन लागे । नभ सुर नगर लोग अनुरागे ॥
बने बराती बरनि न जाहीं । महा मुदित मन सुख न समाहीं ॥२॥
पुरबासिन्ह तब राय जोहारे । देखत रामहि भए सुखारे ॥
करहिं निछावरि मनिगन चीरा । बारि बिलोचन पुलक सरीरा ॥३॥
आरति करहिं मुदित पुर नारी । हरषहिं निरखि कुँअर बर चारी ॥
सिबिका सुभग ओहार उघारी । देखि दुलहिनिन्ह होहिं सुखारी ॥४॥
(दोहा)
एहि बिधि सबही देत सुखु आए राजदुआर।
मुदित मातु परुछनि करहिं बधुन्ह समेत कुमार ॥ ३४८ ॥