रामचरितमानस कथा का रूपक वर्णन
(चौपाई)
आरति बिनय दीनता मोरी । लघुता ललित सुबारि न थोरी ॥
अदभुत सलिल सुनत गुनकारी । आस पिआस मनोमल हारी ॥१॥
राम सुप्रेमहि पोषत पानी । हरत सकल कलि कलुष गलानौ ॥
भव श्रम सोषक तोषक तोषा । समन दुरित दुख दारिद दोषा ॥२॥
काम कोह मद मोह नसावन । बिमल बिबेक बिराग बढ़ावन ॥
सादर मज्जन पान किए तें । मिटहिं पाप परिताप हिए तें ॥३॥
जिन्ह एहि बारि न मानस धोए । ते कायर कलिकाल बिगोए ॥
तृषित निरखि रबि कर भव बारी । फिरिहहि मृग जिमि जीव दुखारी ॥४॥
(दोहा)
मति अनुहारि सुबारि गुन गनि मन अन्हवाइ ।
सुमिरि भवानी संकरहि कह कबि कथा सुहाइ ॥ ४३(क) ॥
अब रघुपति पद पंकरुह हियँ धरि पाइ प्रसाद ।
कहउँ जुगल मुनिबर्ज कर मिलन सुभग संबाद ॥ ४३(ख) ॥