भगवान शंकर का पार्वती से श्रीराम की परीक्षा का अनुरोघ
(चौपाई)
जौं तुम्हरें मन अति संदेहू । तौ किन जाइ परीछा लेहू ॥
तब लगि बैठ अहउँ बटछाहिं । जब लगि तुम्ह ऐहहु मोहि पाही ॥१॥
जैसें जाइ मोह भ्रम भारी । करेहु सो जतनु बिबेक बिचारी ॥
चलीं सती सिव आयसु पाई । करहिं बिचारु करौं का भाई ॥२॥
इहाँ संभु अस मन अनुमाना । दच्छसुता कहुँ नहिं कल्याना ॥
मोरेहु कहें न संसय जाहीं । बिधी बिपरीत भलाई नाहीं ॥३॥
होइहि सोइ जो राम रचि राखा । को करि तर्क बढ़ावै साखा ॥
अस कहि लगे जपन हरिनामा । गई सती जहँ प्रभु सुखधामा ॥४॥
(दोहा)
पुनि पुनि हृदयँ विचारु करि धरि सीता कर रुप ।
आगें होइ चलि पंथ तेहि जेहिं आवत नरभूप ॥ ५२ ॥