माता पार्वती वापिस भगवान शंकर के पास
(चौपाई)
देखे जहँ तहँ रघुपति जेते । सक्तिन्ह सहित सकल सुर तेते ॥
जीव चराचर जो संसारा । देखे सकल अनेक प्रकारा ॥१॥
पूजहिं प्रभुहि देव बहु बेषा । राम रूप दूसर नहिं देखा ॥
अवलोके रघुपति बहुतेरे । सीता सहित न बेष घनेरे ॥२॥
सोइ रघुबर सोइ लछिमनु सीता । देखि सती अति भई सभीता ॥
हृदय कंप तन सुधि कछु नाहीं । नयन मूदि बैठीं मग माहीं ॥३॥
बहुरि बिलोकेउ नयन उघारी । कछु न दीख तहँ दच्छकुमारी ॥
पुनि पुनि नाइ राम पद सीसा । चलीं तहाँ जहँ रहे गिरीसा ॥४॥
(दोहा)
गई समीप महेस तब हँसि पूछी कुसलात ।
लीन्ही परीछा कवन बिधि कहहु सत्य सब बात ॥ ५५ ॥