Sunday, 17 November, 2024

Bharat exalt at the sight of the ashram

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Bharat exalt at the sight of the ashram

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श्रीराम के आश्रम को देखकर भरत हर्षान्वित
 
बन प्रदेस मुनि बास घनेरे । जनु पुर नगर गाउँ गन खेरे ॥
बिपुल बिचित्र बिहग मृग नाना । प्रजा समाजु न जाइ बखाना ॥१॥
 
खगहा करि हरि बाघ बराहा । देखि महिष बृष साजु सराहा ॥
बयरु बिहाइ चरहिं एक संगा । जहँ तहँ मनहुँ सेन चतुरंगा ॥२॥
 
झरना झरहिं मत्त गज गाजहिं । मनहुँ निसान बिबिधि बिधि बाजहिं ॥
चक चकोर चातक सुक पिक गन । कूजत मंजु मराल मुदित मन ॥३॥
 
अलिगन गावत नाचत मोरा । जनु सुराज मंगल चहु ओरा ॥
बेलि बिटप तृन सफल सफूला । सब समाजु मुद मंगल मूला ॥४॥
 
(दोहा) 
राम सैल सोभा निरखि भरत हृदयँ अति पेमु ।
तापस तप फलु पाइ जिमि सुखी सिरानें नेमु ॥ २३६ ॥
 
॥ मासपारायण, बीसवाँ विश्राम ॥ नवाह्नपारायण, पाँचवाँ विश्राम ॥

 

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