Bharat move forward to Chitrakoot
By-Gujju01-05-2023
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भरत चित्रकूट की ओर चले
जमुन तीर तेहि दिन करि बासू । भयउ समय सम सबहि सुपासू ॥
रातहिं घाट घाट की तरनी । आईं अगनित जाहिं न बरनी ॥१॥
प्रात पार भए एकहि खेंवाँ । तोषे रामसखा की सेवाँ ॥
चले नहाइ नदिहि सिर नाई । साथ निषादनाथ दोउ भाई ॥२॥
आगें मुनिबर बाहन आछें । राजसमाज जाइ सबु पाछें ॥
तेहिं पाछें दोउ बंधु पयादें । भूषन बसन बेष सुठि सादें ॥३॥
सेवक सुह्रद सचिवसुत साथा । सुमिरत लखनु सीय रघुनाथा ॥
जहँ जहँ राम बास बिश्रामा । तहँ तहँ करहिं सप्रेम प्रनामा ॥४॥
(दोहा)
मगबासी नर नारि सुनि धाम काम तजि धाइ ।
देखि सरूप सनेह सब मुदित जनम फलु पाइ ॥ २२१ ॥