निकलने से पहले भरत ने राम से सलाह मागी
पुरजन परिजन प्रजा गोसाई । सब सुचि सरस सनेहँ सगाई ॥
राउर बदि भल भव दुख दाहू । प्रभु बिनु बादि परम पद लाहू ॥१॥
स्वामि सुजानु जानि सब ही की । रुचि लालसा रहनि जन जी की ॥
प्रनतपालु पालिहि सब काहू । देउ दुहू दिसि ओर निबाहू ॥२॥
अस मोहि सब बिधि भूरि भरोसो । किएँ बिचारु न सोचु खरो सो ॥
आरति मोर नाथ कर छोहू । दुहुँ मिलि कीन्ह ढीठु हठि मोहू ॥३॥
यह बड़ दोषु दूरि करि स्वामी । तजि सकोच सिखइअ अनुगामी ॥
भरत बिनय सुनि सबहिं प्रसंसी । खीर नीर बिबरन गति हंसी ॥४॥
(दोहा)
दीनबंधु सुनि बंधु के बचन दीन छलहीन ।
देस काल अवसर सरिस बोले रामु प्रबीन ॥ ३१४ ॥