तपस्वी के वेश में भरत नंदीग्राम में रहे
राम मातु गुर पद सिरु नाई । प्रभु पद पीठ रजायसु पाई ॥
नंदिगावँ करि परन कुटीरा । कीन्ह निवासु धरम धुर धीरा ॥१॥
जटाजूट सिर मुनिपट धारी । महि खनि कुस साँथरी सँवारी ॥
असन बसन बासन ब्रत नेमा । करत कठिन रिषिधरम सप्रेमा ॥२॥
भूषन बसन भोग सुख भूरी । मन तन बचन तजे तिन तूरी ॥
अवध राजु सुर राजु सिहाई । दसरथ धनु सुनि धनदु लजाई ॥३॥
तेहिं पुर बसत भरत बिनु रागा । चंचरीक जिमि चंपक बागा ॥
रमा बिलासु राम अनुरागी । तजत बमन जिमि जन बड़भागी ॥४॥
(दोहा)
राम पेम भाजन भरतु बड़े न एहिं करतूति ।
चातक हंस सराहिअत टेंक बिबेक बिभूति ॥ ३२४ ॥