Bharat turn down the offer
By-Gujju01-05-2023
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अयोध्या की राजगादी पर बैठने से भरत ने इन्कार किया
मोहि उपदेसु दीन्ह गुर नीका । प्रजा सचिव संमत सबही का ॥
मातु उचित धरि आयसु दीन्हा । अवसि सीस धरि चाहउँ कीन्हा ॥१॥
गुर पितु मातु स्वामि हित बानी । सुनि मन मुदित करिअ भलि जानी ॥
उचित कि अनुचित किएँ बिचारू । धरमु जाइ सिर पातक भारू ॥२॥
तुम्ह तौ देहु सरल सिख सोई । जो आचरत मोर भल होई ॥
जद्यपि यह समुझत हउँ नीकें । तदपि होत परितोषु न जी कें ॥३॥
अब तुम्ह बिनय मोरि सुनि लेहू । मोहि अनुहरत सिखावनु देहू ॥
ऊतरु देउँ छमब अपराधू । दुखित दोष गुन गनहिं न साधू ॥४॥
(दोहा)
पितु सुरपुर सिय रामु बन करन कहहु मोहि राजु ।
एहि तें जानहु मोर हित कै आपन बड़ काजु ॥ १७७ ॥