Sunday, 17 November, 2024

Bharat want to see Chitrakoot

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भरत श्रीराम से चित्रकूट-दर्शन की आज्ञा लेता है  
 
एकु मनोरथु बड़ मन माहीं । सभयँ सकोच जात कहि नाहीं ॥
कहहु तात प्रभु आयसु पाई । बोले बानि सनेह सुहाई ॥१॥
 
चित्रकूट सुचि थल तीरथ बन । खग मृग सर सरि निर्झर गिरिगन ॥
प्रभु पद अंकित अवनि बिसेषी । आयसु होइ त आवौं देखी ॥२॥
 
अवसि अत्रि आयसु सिर धरहू । तात बिगतभय कानन चरहू ॥
मुनि प्रसाद बनु मंगल दाता । पावन परम सुहावन भ्राता ॥३॥
 
रिषिनायकु जहँ आयसु देहीं । राखेहु तीरथ जलु थल तेहीं ॥
सुनि प्रभु बचन भरत सुख पावा । मुनि पद कमल मुदित सिरु नावा ॥४॥
 
(दोहा)   
भरत राम संबादु सुनि सकल सुमंगल मूल ।
सुर स्वारथी सराहि कुल बरषत सुरतरु फूल ॥ ३०८ ॥

 

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