भरत के बाण से हनुमानजी घायल
परेउ मुरुछि महि लागत सायक । सुमिरत राम राम रघुनायक ॥
सुनि प्रिय बचन भरत तब धाए । कपि समीप अति आतुर आए ॥१॥
बिकल बिलोकि कीस उर लावा । जागत नहिं बहु भाँति जगावा ॥
मुख मलीन मन भए दुखारी । कहत बचन भरि लोचन बारी ॥२॥
जेहिं बिधि राम बिमुख मोहि कीन्हा । तेहिं पुनि यह दारुन दुख दीन्हा ॥
जौं मोरें मन बच अरु काया । प्रीति राम पद कमल अमाया ॥३॥
तौ कपि होउ बिगत श्रम सूला । जौं मो पर रघुपति अनुकूला ॥
सुनत बचन उठि बैठ कपीसा । कहि जय जयति कोसलाधीसा ॥४॥
(सोरठा)
लीन्ह कपिहि उर लाइ पुलकित तनु लोचन सजल ।
प्रीति न हृदयँ समाइ सुमिरि राम रघुकुल तिलक ॥ ५९ ॥