बहुओं के आने से अयोध्या की शोभा में अभिवृद्धि
(चौपाई)
नीदउँ बदन सोह सुठि लोना । मनहुँ साँझ सरसीरुह सोना ॥
घर घर करहिं जागरन नारीं । देहिं परसपर मंगल गारीं ॥१॥
पुरी बिराजति राजति रजनी । रानीं कहहिं बिलोकहु सजनी ॥
सुंदर बधुन्ह सासु लै सोई । फनिकन्ह जनु सिरमनि उर गोई ॥२॥
प्रात पुनीत काल प्रभु जागे । अरुनचूड़ बर बोलन लागे ॥
बंदि मागधन्हि गुनगन गाए । पुरजन द्वार जोहारन आए ॥३॥
बंदि बिप्र सुर गुर पितु माता । पाइ असीस मुदित सब भ्राता ॥
जननिन्ह सादर बदन निहारे । भूपति संग द्वार पगु धारे ॥४॥
(दोहा)
कीन्ह सौच सब सहज सुचि सरित पुनीत नहाइ ।
प्रातक्रिया करि तात पहिं आए चारिउ भाइ ॥ ३५८ ॥