मिथिला में आनंदोत्सव
(चौपाई)
पुर अरु ब्योम बाजने बाजे । खल भए मलिन साधु सब राजे ॥
सुर किंनर नर नाग मुनीसा । जय जय जय कहि देहिं असीसा ॥१॥
नाचहिं गावहिं बिबुध बधूटीं । बार बार कुसुमांजलि छूटीं ॥
जहँ तहँ बिप्र बेदधुनि करहीं । बंदी बिरदावलि उच्चरहीं ॥२॥
महि पाताल नाक जसु ब्यापा । राम बरी सिय भंजेउ चापा ॥
करहिं आरती पुर नर नारी । देहिं निछावरि बित्त बिसारी ॥३॥
सोहति सीय राम कै जौरी । छबि सिंगारु मनहुँ एक ठोरी ॥
सखीं कहहिं प्रभुपद गहु सीता । करति न चरन परस अति भीता ॥४॥
(दोहा)
गौतम तिय गति सुरति करि नहिं परसति पग पानि ।
मन बिहसे रघुबंसमनि प्रीति अलौकिक जानि ॥ २६५ ॥