मुनि विश्वामित्र की अयोध्या से विदाय
(चौपाई)
बामदेव रघुकुल गुर ग्यानी । बहुरि गाधिसुत कथा बखानी ॥
सुनि मुनि सुजसु मनहिं मन राऊ । बरनत आपन पुन्य प्रभाऊ ॥१॥
बहुरे लोग रजायसु भयऊ । सुतन्ह समेत नृपति गृहँ गयऊ ॥
जहँ तहँ राम ब्याहु सबु गावा । सुजसु पुनीत लोक तिहुँ छावा ॥२॥
आए ब्याहि रामु घर जब तें । बसइ अनंद अवध सब तब तें ॥
प्रभु बिबाहँ जस भयउ उछाहू । सकहिं न बरनि गिरा अहिनाहू ॥३॥
कबिकुल जीवनु पावन जानी । राम सीय जसु मंगल खानी ॥
तेहि ते मैं कछु कहा बखानी । करन पुनीत हेतु निज बानी ॥४॥
(छंद)
निज गिरा पावनि करन कारन राम जसु तुलसी कह्यो ।
रघुबीर चरित अपार बारिधि पारु कबि कौनें लह्यो ॥
उपबीत ब्याह उछाह मंगल सुनि जे सादर गावहीं ।
बैदेहि राम प्रसाद ते जन सर्बदा सुखु पावहीं ॥
(सोरठा)
सिय रघुबीर बिबाहु जे सप्रेम गावहिं सुनहिं ।
तिन्ह कहुँ सदा उछाहु मंगलायतन राम जसु ॥ ३६१ ॥
॥ मासपारायण, बारहवाँ विश्राम ॥
। इति श्रीमद्रामचरितमानसे सकलकलिकलुषविध्वंसने प्रथमः सोपानः समाप्तः ।
॥ बालकांड समाप्तः ॥