स्वयंवर की शर्त और नियमो की घोषणा
(चौपाई)
राम रूपु अरु सिय छबि देखें । नर नारिन्ह परिहरीं निमेषें ॥
सोचहिं सकल कहत सकुचाहीं । बिधि सन बिनय करहिं मन माहीं ॥१॥
हरु बिधि बेगि जनक जड़ताई । मति हमारि असि देहि सुहाई ॥
बिनु बिचार पनु तजि नरनाहु । सीय राम कर करै बिबाहू ॥२॥
जग भल कहहि भाव सब काहू । हठ कीन्हे अंतहुँ उर दाहू ॥
एहिं लालसाँ मगन सब लोगू । बरु साँवरो जानकी जोगू ॥३॥
तब बंदीजन जनक बौलाए । बिरिदावली कहत चलि आए ॥
कह नृप जाइ कहहु पन मोरा । चले भाट हियँ हरषु न थोरा ॥४॥
(दोहा)
बोले बंदी बचन बर सुनहु सकल महिपाल ।
पन बिदेह कर कहहिं हम भुजा उठाइ बिसाल ॥ २४९ ॥