दक्ष प्रजापति का यज्ञ
(चौपाई)
एहि बिधि दुखित प्रजेसकुमारी । अकथनीय दारुन दुखु भारी ॥
बीतें संबत सहस सतासी । तजी समाधि संभु अबिनासी ॥१॥
राम नाम सिव सुमिरन लागे । जानेउ सतीं जगतपति जागे ॥
जाइ संभु पद बंदनु कीन्ही । सनमुख संकर आसनु दीन्हा ॥२॥
लगे कहन हरिकथा रसाला । दच्छ प्रजेस भए तेहि काला ॥
देखा बिधि बिचारि सब लायक । दच्छहि कीन्ह प्रजापति नायक ॥३॥
बड़ अधिकार दच्छ जब पावा । अति अभिमानु हृदयँ तब आवा ॥
नहिं कोउ अस जनमा जग माहीं । प्रभुता पाइ जाहि मद नाहीं ॥४॥
(दोहा)
दच्छ लिए मुनि बोलि सब करन लगे बड़ जाग ।
नेवते सादर सकल सुर जे पावत मख भाग ॥ ६० ॥