Tuesday, 24 December, 2024

Dashrath consent to Vishwamitra’s proposal

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Dashrath consent to Vishwamitra’s proposal

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राम-लक्ष्मण को भेजने की विश्वामित्र की मांग का दशरथ द्वारा स्वीकार
 
(चौपाई)
सुनि राजा अति अप्रिय बानी । हृदय कंप मुख दुति कुमुलानी ॥
चौथेंपन पायउँ सुत चारी । बिप्र बचन नहिं कहेहु बिचारी ॥१॥

मागहु भूमि धेनु धन कोसा । सर्बस देउँ आजु सहरोसा ॥
देह प्रान तें प्रिय कछु नाही । सोउ मुनि देउँ निमिष एक माही ॥२॥

सब सुत प्रिय मोहि प्रान कि नाईं । राम देत नहिं बनइ गोसाई ॥
कहँ निसिचर अति घोर कठोरा । कहँ सुंदर सुत परम किसोरा ॥३॥

सुनि नृप गिरा प्रेम रस सानी । हृदयँ हरष माना मुनि ग्यानी ॥
तब बसिष्ट बहु निधि समुझावा । नृप संदेह नास कहँ पावा ॥४॥

अति आदर दोउ तनय बोलाए । हृदयँ लाइ बहु भाँति सिखाए ॥
मेरे प्रान नाथ सुत दोऊ । तुम्ह मुनि पिता आन नहिं कोऊ ॥५॥

(दोहा)
सौंपे भूप रिषिहि सुत बहु बिधि देइ असीस ।
जननी भवन गए प्रभु चले नाइ पद सीस ॥ २०८(क) ॥

(सोरठा)
पुरुषसिंह दोउ बीर हरषि चले मुनि भय हरन ॥
कृपासिंधु मतिधीर अखिल बिस्व कारन करन ॥ २०८(ख) ॥

 

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