महाराजा दशरथ गौदान करते है
(चौपाई)
नित नूतन मंगल पुर माहीं । निमिष सरिस दिन जामिनि जाहीं ॥
बड़े भोर भूपतिमनि जागे । जाचक गुन गन गावन लागे ॥ १ ॥
देखि कुअँर बर बधुन्ह समेता । किमि कहि जात मोदु मन जेता ॥
प्रातक्रिया करि गे गुरु पाहीं । महाप्रमोदु प्रेमु मन माहीं ॥ २ ॥
करि प्रनाम पूजा कर जोरी । बोले गिरा अमिअँ जनु बोरी ॥
तुम्हरी कृपाँ सुनहु मुनिराजा । भयउँ आजु मैं पूरनकाजा ॥ ३ ॥
अब सब बिप्र बोलाइ गोसाईं । देहु धेनु सब भाँति बनाई ॥
सुनि गुर करि महिपाल बड़ाई । पुनि पठए मुनि बृंद बोलाई ॥ ४ ॥
(दोहा)
बामदेउ अरु देवरिषि बालमीकि जाबालि ।
आए मुनिबर निकर तब कौसिकादि तपसालि ॥ ३३० ॥