Friday, 15 November, 2024

Dashratha update Vasistha

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महाराजा दशरथ कुलगुरु वशिष्ठ को खुशखबर सुनाते है
 
(चौपाई)
सुनि बोले गुर अति सुखु पाई । पुन्य पुरुष कहुँ महि सुख छाई ॥
जिमि सरिता सागर महुँ जाहीं । जद्यपि ताहि कामना नाहीं ॥१॥

तिमि सुख संपति बिनहिं बोलाएँ । धरमसील पहिं जाहिं सुभाएँ ॥
तुम्ह गुर बिप्र धेनु सुर सेबी । तसि पुनीत कौसल्या देबी ॥२॥

सुकृती तुम्ह समान जग माहीं । भयउ न है कोउ होनेउ नाहीं ॥
तुम्ह ते अधिक पुन्य बड़ काकें । राजन राम सरिस सुत जाकें ॥३॥

बीर बिनीत धरम ब्रत धारी । गुन सागर बर बालक चारी ॥
तुम्ह कहुँ सर्ब काल कल्याना । सजहु बरात बजाइ निसाना ॥४॥

(दोहा)
चलहु बेगि सुनि गुर बचन भलेहिं नाथ सिरु नाइ ।
भूपति गवने भवन तब दूतन्ह बासु देवाइ ॥ २९४ ॥

 

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