देवताओं द्वारा लक्ष्मण का अभिवादन
बिनु प्रयास हनुमान उठायो । लंका द्वार राखि पुनि आयो ॥
तासु मरन सुनि सुर गंधर्बा । चढ़ि बिमान आए नभ सर्बा ॥१॥
बरषि सुमन दुंदुभीं बजावहिं । श्रीरघुनाथ बिमल जसु गावहिं ॥
जय अनंत जय जगदाधारा । तुम्ह प्रभु सब देवन्हि निस्तारा ॥२॥
अस्तुति करि सुर सिद्ध सिधाए । लछिमन कृपासिन्धु पहिं आए ॥
सुत बध सुना दसानन जबहीं । मुरुछित भयउ परेउ महि तबहीं ॥३॥
मंदोदरी रुदन कर भारी । उर ताड़न बहु भाँति पुकारी ॥
नगर लोग सब ब्याकुल सोचा । सकल कहहिं दसकंधर पोचा ॥४॥
(दोहा)
तब दसकंठ बिबिध बिधि समुझाईं सब नारि ।
नस्वर रूप जगत सब देखहु हृदयँ बिचारि ॥ ७७ ॥