सहायता के लिए आतंकित देवता प्रभु के पास चले
(चौपाई)
बाढ़े खल बहु चोर जुआरा । जे लंपट परधन परदारा ॥
मानहिं मातु पिता नहिं देवा । साधुन्ह सन करवावहिं सेवा ॥१॥
जिन्ह के यह आचरन भवानी । ते जानेहु निसिचर सब प्रानी ॥
अतिसय देखि धर्म कै ग्लानी । परम सभीत धरा अकुलानी ॥२॥
गिरि सरि सिंधु भार नहिं मोही । जस मोहि गरुअ एक परद्रोही ॥
सकल धर्म देखइ बिपरीता । कहि न सकइ रावन भय भीता ॥३॥
धेनु रूप धरि हृदयँ बिचारी । गई तहाँ जहँ सुर मुनि झारी ॥
निज संताप सुनाएसि रोई । काहू तें कछु काज न होई ॥४॥
छंद
सुर मुनि गंधर्बा मिलि करि सर्बा गे बिरंचि के लोका ।
सँग गोतनुधारी भूमि बिचारी परम बिकल भय सोका ॥
ब्रह्माँ सब जाना मन अनुमाना मोर कछू न बसाई ।
जा करि तैं दासी सो अबिनासी हमरेउ तोर सहाई ॥
(सोरठा)
धरनि धरहि मन धीर कह बिरंचि हरिपद सुमिरु ।
जानत जन की पीर प्रभु भंजिहि दारुन बिपति ॥ १८४ ॥