सज्जन और दुर्जन का भेद
(चौपाई)
मैं अपनी दिसि कीन्ह निहोरा । तिन्ह निज ओर न लाउब भोरा ॥
बायस पलिअहिं अति अनुरागा । होहिं निरामिष कबहुँ कि कागा ॥१॥
बंदउँ संत असज्जन चरना । दुखप्रद उभय बीच कछु बरना ॥
बिछुरत एक प्रान हरि लेहीं । मिलत एक दुख दारुन देहीं ॥२॥
उपजहिं एक संग जग माहीं । जलज जोंक जिमि गुन बिलगाहीं ॥
सुधा सुरा सम साधू असाधू । जनक एक जग जलधि अगाधू ॥३॥
भल अनभल निज निज करतूती । लहत सुजस अपलोक बिभूती ॥
सुधा सुधाकर सुरसरि साधू । गरल अनल कलिमल सरि ब्याधू ॥४॥
गुन अवगुन जानत सब कोई । जो जेहि भाव नीक तेहि सोई ॥५॥
(दोहा)
भलो भलाइहि पै लहइ लहइ निचाइहि नीचु ।
सुधा सराहिअ अमरताँ गरल सराहिअ मीचु ॥ ५ ॥