चंद्र का उदय देखकर चर्चा
इहाँ सुबेल सैल रघुबीरा । उतरे सेन सहित अति भीरा ॥
सिखर एक उतंग अति देखी । परम रम्य सम सुभ्र बिसेषी ॥१॥
तहँ तरु किसलय सुमन सुहाए । लछिमन रचि निज हाथ डसाए ॥
ता पर रूचिर मृदुल मृगछाला । तेहीं आसान आसीन कृपाला ॥२॥
प्रभु कृत सीस कपीस उछंगा । बाम दहिन दिसि चाप निषंगा ॥
दुहुँ कर कमल सुधारत बाना । कह लंकेस मंत्र लगि काना ॥३॥
बड़भागी अंगद हनुमाना । चरन कमल चापत बिधि नाना ॥
प्रभु पाछें लछिमन बीरासन । कटि निषंग कर बान सरासन ॥४॥
(दोहा)
एहि बिधि कृपा रूप गुन धाम रामु आसीन ।
धन्य ते नर एहिं ध्यान जे रहत सदा लयलीन ॥ ११(क) ॥
पूरब दिसा बिलोकि प्रभु देखा उदित मंयक ।
कहत सबहि देखहु ससिहि मृगपति सरिस असंक ॥ ११(ख) ॥