प्रभु के स्वरूप का वर्णन
(चौपाई)
सुनु सेवक सुरतरु सुरधेनु । बिधि हरि हर बंदित पद रेनू ॥
सेवत सुलभ सकल सुख दायक । प्रनतपाल सचराचर नायक ॥१॥
जौं अनाथ हित हम पर नेहू । तौ प्रसन्न होइ यह बर देहू ॥
जो सरूप बस सिव मन माहीं । जेहि कारन मुनि जतन कराहीं ॥२॥
जो भुसुंडि मन मानस हंसा । सगुन अगुन जेहि निगम प्रसंसा ॥
देखहिं हम सो रूप भरि लोचन । कृपा करहु प्रनतारति मोचन ॥३॥
दंपति बचन परम प्रिय लागे । मुदुल बिनीत प्रेम रस पागे ॥
भगत बछल प्रभु कृपानिधाना । बिस्वबास प्रगटे भगवाना ॥४॥
(दोहा)
नील सरोरुह नील मनि नील नीरधर स्याम ।
लाजहिं तन सोभा निरखि कोटि कोटि सत काम ॥ १४६ ॥