श्रीराम के भक्त धन्य है
सोइ सर्बग्य गुनी सोइ ग्याता । सोइ महि मंडित पंडित दाता ॥
धर्म परायन सोइ कुल त्राता । राम चरन जा कर मन राता ॥१॥
नीति निपुन सोइ परम सयाना । श्रुति सिद्धांत नीक तेहिं जाना ॥
सोइ कबि कोबिद सोइ रनधीरा । जो छल छाड़ि भजइ रघुबीरा ॥२॥
धन्य देस सो जहँ सुरसरी । धन्य नारि पतिब्रत अनुसरी ॥
धन्य सो भूपु नीति जो करई । धन्य सो द्विज निज धर्म न टरई ॥३॥
सो धन धन्य प्रथम गति जाकी । धन्य पुन्य रत मति सोइ पाकी ॥
धन्य घरी सोइ जब सतसंगा । धन्य जन्म द्विज भगति अभंगा ॥४॥
(दोहा)
सो कुल धन्य उमा सुनु जगत पूज्य सुपुनीत ।
श्रीरघुबीर परायन जेहिं नर उपज बिनीत ॥ १२७ ॥